जैन साहित्य की आवश्यकता
पंच परमेष्ठी भगवंतो की जय हो।
जैन साहित्य संस्कृति का उद्वाहक तत्त्व है। संस्कृति के हर कोने को जैन साहित्य के अन्तस्तल में देखा जा सकता है।
जैन साहित्य की विविधता और प्राञ्जलता में उसकी संस्कृति को पहचानना कठिन नहीं | जैनाचार्यों ने अपने आपको लौकिक जीवन से समरस बनाये रखा। इसके लिए उन्होंने प्राकृत और अपभ्रंश जैसी लोकभाषाओं किंवा बोलियों को अपनी अभिव्यक्ति का साधन स्वीकार किया।
आवश्यकता प्रतीत होने पर उन्होंने संस्कृत को भी पूरे मन से अपनाया।
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने एक कविता में लिखा है-
अंधकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं है।
निर्बल है वह देश जहाँ साहित्य नहीं है।।
अर्थ- किसी भी देश का गौरव वहाँ के साहित्य भण्डार से आंका जाता है यह बात कवि की पंक्तियों से स्पष्ट हो रही है।
हमारा भारत देश सदा-सदा से साहित्य का प्रमुख समृद्ध केन्द्र रहा है। यहाँ के ऋषि-मुनियों ने प्राणीमात्र के हित को दृष्टि में रखते हुए समय-समय पर सारगर्भित एवं सर्वजन सुलभ साहित्य की रचना की है।
सत् साहित्य को पढ़ने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञान को मनीषियों ने सच्चे प्रकाश की उपमा देकर अज्ञानता को महान् अंधकार के रूप में बताया हैै।
``Ignorance is night of the mind, but a night without moon and stars.
अर्थात् ‘‘अज्ञानता मन की वह अंधेरी रात है, जिसमें न चाँद हैं न तारे’’ ऐसी अंधेरी दुनिया में महापुरुषों द्वारा बताई या लिखी गई बातें ही हमारे लिए प्रकाश देने का कार्य करते हैं। उनके द्वारा लिखी गई एक-एक पंक्ति कभी-कभी महान जीवनदायिनी बन जाती है।
जिन शास्त्रनिविषे शृङ्गार भोग कोतूहलादिक पोषि रागभावका और हिसा- युद्धादिक पोषि द्वेषभावका व श्रद्धान पोषि मोहभावका प्रयोजन प्रगट किया होय ते शास्त्र नाही शस्त्र है। ( मोक्षमार्ग प्रकाशक , प्रथम अधिकार )
जैन साहित्य की व्यापकता
जैन धर्म को जीवित रखने के लिए हमारे महान विद्वान एवं आचार्य ने अनेकों शास्त्र अनेकों विभागों में लिखे थे ।
जैन लेखकों की कृतियाँ परिमाण, गुणवत्ता, विविधता आदि अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती हैं। यहाँ हम उन्हें विविधता की दृष्टि से देखने का लघु प्रयास करना चाहते हैं।
आश्चर्य होता है कि जैन लेखकों ने धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि कुछ गिने-चुने विषयों पर ही नहीं, अपितु भारतीय वाड.मय के प्रायः प्रत्येक विषय पर अनेकानेक कृतियों की रचना की है
जैन साहित्य पूरे विश्व का सर्वोत्कृष्ट एवं अद्वितीय है
भूदरदासजी ने जैन शतक में कहा है :-
(कवित्त मनहर)
जीवन अलप आयु बुद्धि बल हीन तामैं,
आगम अगाध सिंधु कैसैं ताहि डाक है ।
द्वादशांग मूल एक अनुभौ अपूर्व कला,
भवदाघहारी घनसार की सलाक है ॥
यह एक सीख लीजै याही कौ अभ्यास कीजे,
याकौ रस पीजै ऐसो वीरजिन-वाक है ।
इतनो ही सार येही आतम को हितकार,
याहीं लौं मदार और आगे ढूकढाक है ॥२१॥
हे भाई ! यह मनुष्य जीवन वैसे ही बहुत थोड़ी आयुवाला है, ऊपर से उसमें बुद्धि और बल भी बहुत कम है, जबकि आगम तो अगाध समुद्र के समान है, अत: इस जीवन में उसका पार कैसे पाया जा सकता है?
अत: हे भाई! वस्तुतः सम्पूर्ण द्वादशांगरूप जिनवाणी का मूल तो एक आत्मा का अनुभव है, जो बड़ी अपूर्व कला है और संसाररूपी ताप को शान्त करने के लिए चन्दन की शलाका है। अत: इस जीवन में एकमात्र आत्मानुभवरूप अपूर्व कला को ही सीख लो, उसका ही अभ्यास करो और उसका ही भरपूर आनन्द प्राप्त करो। यही भगवान महावीर की वाणी है।
हे भाई। एक आत्मानुभव ही सारभूत है - प्रयोजन भूत हैं, करने लायक कार्य है, और इस आत्मानुभव के अतिरिक्त अन्य सब तो बस कोरी बातें हैं।
तथा इस प्रसंग में एक दोहा भी गंभीरतापूर्वक विचारणीय है -
“अंतोणत्थि सुईणं कालो थोओ वयं च दुम्मेहा।
तं णवरि सिक्खियव्वं जं जरमरणक्खयं कुणदि।”(99)
(मुनि रामसिंह के ‘पाहुड दोहा’)
अर्थात् शास्त्रों का अन्त नहीं है, समय थोड़ा है और हम दुर्बुद्धि हैं, अत: केवल वही सीखना चाहिए जिससे जन्म-मरण का क्षय हो।
इसलिए जैन शास्त्रों का अध्यन करके अपना कल्याण करो।
बहु शोभनम्।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteGood work
ReplyDeleteKeep it up
Dr. Pulak Goyal
बहुत अच्छे बेटा... धर्म वृद्धि हो, धर्म की प्रभावना करते रहो✨
ReplyDeleteSuperb, deeply and splendid religious work by you.
ReplyDeleteVery good bro..
ReplyDeleteNice work 👌👌
अतिमहत्वपूर्ण बात को अनेकों उद्धरण सहित भी संक्षेप में और अच्छी भाषा में प्रस्तुत किया है। उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं।
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा काम हमारे भाई आयुष ने किया है ब्लॉग में बहुत सारी जानकारिया है जो मेने पडी है बहुत ही सुन्दर शैली मे ये blog hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण ����
ReplyDeleteShandaar bhaiya ji ... !!🙏🙏
ReplyDeleteHmare jain dhrm ke gaurav hai aap ...aise hi gyan ki prabhavna krte rhe....🙏🙏
ReplyDeleteKeep it up.Great
ReplyDeletebest
ReplyDeleteGreat
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